Gomukh Himalay
नमस्कार मित्रो में dharmendra nautiyal आज की इस पोस्ट में आपको गोमुख हिमालय के बारे में बताने जा रहा हूँ। जैसे कि आप और हम सभीलोग गंगा नदी को को जानते ही है। हमारे देश में हिन्दू धर्म में गंगा नदी को मोक्ष और जीवनदायिनी गंगा मा माना गया है। हिंदुओं में परंपरा है कि किसी के मरने के बाद उसका शवदाह करके अस्थियां गंगा में प्रवाहित की जाती हैं। तो हमारे देश में बहुत सारे नदिया है। और उनका उद्गम स्थल भी है। इसी तरह गंगा नदी का उद्गम स्थल गोमुख हिमालय है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थल है। उत्तरकाशी और ऋषिकेश से 155 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक शहर है, जो उत्तरकाशी जिले का मुख्यालय है। यह शहर भागीरथी नदी के तट पर बसा हुआ है। उत्तरकाशी धार्मिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण शहर है। यहां भगवान विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। यह शहर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां एक तरफ जहां पहाड़ों के बीच बहती नदियां दिखती हैं वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों पर घने जंगल भी दिखते हैं। यहां आप पहाड़ों पर चढ़ाई का लुफ्त भी उठा सकते हैं। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है।समुद्र तल से 3,140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री मंदिर भोज वृक्षों से घिरा तथा किनारे पर खड़े पर्वत की शिवलिंग, सतोपंथ जैसी चोटियों के साथ देवदार जंगल के बीच एक सुंदर घाटी है। भागीरथी घाटी के बाहर निकलकर केदारगंगा तथा भागीरथी के कोलाहल को छोड़कर जल गंगा से मिल जाती है, इस सुंदर घाटी के अंत में मंदिर है।
गंगोत्री नेशनल पार्क क्षेत्र में पड़ता है। गोमुख गंगोत्री से 18 किलोमीटर की दूरी पर है।गोमुख के निकटवर्ती क्षेत्र में तपोवन, नंदनवन, कालिंदीपास के साथ शिवलिंग, भागीरथी प्रथम, द्वितीय, तृतीय सहित कई चोटियां हैं।
गंगोत्री का इतिहास -
प्राचीन काल में यहां मंदिर नहीं था।गंगोत्री में सेमवाल पुजारियों के द्वारा गंगा माँ के साकार रूप यानी गंगा धारा की पूजा की जाती थी भागीरथी शिला के निकट एक मंच था जहां यात्रा मौसम के तीन-चार महीनों के लिये देवी-देताओं की मूर्तियां रखी जाती थी इन मूर्तियों को मुखबा आदि गावों से लाया जाता था जिन्हें यात्रा मौसम के बाद फिर उन्हीं गांवों में लौटा दिया जाता था।
गढ़वाल के गुरखा सेनापति अमर सिंह थापा(1)ने 18वीं सदी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण सेमवाल पुजारियों केेे निवेदन पर उसी जगह पर किया जहां भागीरथ ने तप किया था। भगवान शिव की जटाओं से निकलकर पृथ्वी पर जहाँ माँ गंगा का अवतरण हुआ उसी को गंगोत्री के नाम से जाना जाता हैं।और माना जाता है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में मंदिर की मरम्मत करवायी। गढ़ी घाटियां जहां सिरों एवं देवदार के पेड़ों के बीच झिलमिलाती नदियों का आगमन होता है। यह भौतिक दृश्य एक जादू बिखेरता है। सदियों से यह लाखों तीर्थयात्रियों को आध्यात्मिक उत्साह तथा हजारों साहसिकों को एक चिरन्तर चुनौती देता रहा है।
यहाँ के प्रमुख आकर्षण जगह-
यहाँ घूमने के लिए प्रमुख जगह निम्न है जो इस प्रकार से है। विश्वनाथ मंदिर , मनेरी , गंगनानी , दोदीताल , दायरा बुग्याल , सात ताल ,केदार ताल ,नचिकेता ताल ,गोमुख , नंदन-वन-तपोवन , सेममुखेम नागराज , नेहरु पर्वतारोही संस्थान आदि बहुत अच्छे अच्छे जगह है। जो पर्यटकों का मन मोह लेती है।
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