योग क्या है ?
योग एक सही तरह से जीवन जीने का विज्ञान है। और इस लिए इसे सभी को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। योग के विषय मे हमारे ग्रन्थों में बहुत पहले से बताया गया है।हमारे ऋषि मुनिया भी योग के द्वारा ही लम्बी आयु जीते थे। और हमेशा स्वस्थ रहते थे।उन्होंने अपने जीवन में योग को बड़ा महत्व दिया।योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के " युज" धातु से हुई है। जिसका अर्थ है जोड़ना दूसरे शब्दों में हम इसका अर्थ ये भी बोल सकते है । " आत्मा को परमात्मा से जोड़ना " मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए योग करना चाहिए।
. योग क्यों करना चाहिए ?
योग के अंग - योग के निम्न अंग है। जो इस प्रकार से है।
1.यम 2. नियम 3. आसन 4. प्रणायाम
5. धारणा 6. ध्यान 7. समाधि 8.
प्रत्याहार।
Ques. मुद्राये क्या है?
Ans. मुद्रा विज्ञान द्वारा शरीर के पंच तत्व जिनसे शरीर की रचना हुई है उनको घटाना- तथा बढ़ाना संभव है अतः रोगों के उपचार का यह सरल साधन है।
अर्थ- मुद्रा एक प्रकार से स्थानीय प्रक्रिया है एक सूचक स्थिति है जिसके द्वारा शरीर के अंग विशेष की क्रिया को घटाया बढ़ाया या बंद किया जा सकता है मुद्रा विज्ञान द्वारा शरीर की ऊर्जा शक्ति का ज्ञान होता है तथा इसकी वृद्धि में सहायता मिलती है मन की शक्ति पर नियंत्रण संभव होता है तथा उसके प्रभाव को इच्छा अनुसार घटाया बढ़ाया जा सकता है। ये निम्न प्रकार के हैं।
1. ज्ञान मुद्रा- पद्मासन या सुखासन में बैठकर दोनों हाथ की तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे के जोड़ में लगाते हैं। तथा दोनों हाथों की तीनों उंगलियों को सीधा रखते हैं फिर हाथ को घुटने के ऊपर इस प्रकार रखते हैं की हथेली नीचे की ओर रहे और दोनों हाथों की तीनों अंगुलियां तथा अंगूठे पृथ्वी की और रहे इस मुद्रा में 15 से 20 मिनट बैठने से मनोविज्ञान का संचार होता है ।
2. शांभवी मुद्रा- इसको करने के लिए ज्ञान मुद्रा या चिन मुद्रा में बैठकर मेरुदंड को सीधा रखकर भूमध्य पर आंखों को केंद्रित करते हैं इससे नेत्रों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है तथा मन को शांति मिलती है।
3. चिन मुद्रा - यहां ज्ञान मुद्रा के समान है इसको करने के लिए दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर नीचे की ओर ना रख कर ऊपर की ओर रखते हैं इससे शरीर तथा मन की थकान दूर होती है।
4. आकाशीय मुद्रा- इसका प्रयोग ध्यान के किसी आसन में बैठकर जीभ को अंदर की ओर ऊपर तालु की ओर मोड़ते हैं । सिर को आधा पीछे की ओर मोड़ते हैं स्वास धीरे-धीरे तथा गहरी लेते हैं इस मुद्रा से सभी लाभ मिलते हैं।
5. माण्डुकी मुद्रा- इस मुद्रा को करने के लिए भद्रासन में बैठकर नासिकाग्र दृष्टि मुद्रा का अभ्यास करते हैं। ध्यान गंध पर केंद्रित करते हैं इस मुद्रा से शक्ति विकसित होती है।
6. तड़ागी मुद्रा- इसका प्रयोग दोनों पैरों को सामने सीधा करके उनमें कुछ अंतर रखते हुए आगे की ओर कमर झुकाते हैं ।तथा पांव के अंगूठे को कसकर पकड़ते हैं उसके बाद गहरी सांस लेते हैं। फिर स्वास रोकते हैं कुछ देर बाद शरीर को ढीला छोड़ कर आराम करते हैं इस मुद्रा को करने से पाचन क्रिया सुधरती है तथा पेट के रोग दूर होते हैं। तो इस प्रकार से बहुत मुद्राये होती है।
कपाल भाति क्या है।
हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग मस्तिष्क होता है। इसी के द्वारा हम अपने मानसिक व शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करते है। कपाल भाति के द्वारा मस्तिष्क में जो भी दोष होते हैं। वो बाहर निकल जाते हैं। इससे पूराऑक्सीजन मिलता है। और रक्त का संचार होता है।
इस क्रिया को करने के लिए सबसे पहले पद्मासन में बैठ जाते हैं। कमर सीधा करके दृष्टि सामने की और करते हुए।आँखे बंद करके तेजी के साथ स्वास बाहर निकालते है। इसको कम से कम 20 बार करते हैं।
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